कण – कण में बरसाता है बूंदे,
वो एक ही बादल।
एक ही सुरज फैलाता है,
इस जहाँ में किरणों का आँचल।
एक ही चाँद है जो चंदानी बरसाए,
हर अंधकार भरी रात्रि को,
शीतल कर जाए।
एक ही सूर इस दुनिया को भाता है,
जब कोई कृष्ण दूर बहुत दूर,
अपनी बाँसुरी बजाता है।
एक ही जमीन है, एक ही है आसमां,
फिर भी देखो कितना अलग है ये जहां।
एक कागज पर लकीरें खींच कर,
हम इंसान अलग हो गए है।
पर प्रकृति के जीव, अब भी,
एक साथ चलते है।
एक साथ रहते, एक साथ उड़ते,
एक ही साथ मचलते है।
जी करता है पंक्षी बन,
नील गगन मे उड़ जाऊ।
या फिर हवा बन,
हर जगह महक जाऊ।
कुछ नहीं तो ये ईश्वर,
मुझ से ये जिन्दगी ले लेना,
एक बूंद बना कर, पवित्र नदी मे मिला देना।
पानी बन कर, किसी राही कि प्यास बुझाऊँगी।
बहते बहते ही सही पर हर सरहद की हो जाऊँगी।
– पल्लवी
Nice, beautiful
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Thanku…😊😊
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